Laxmi Chalisa: लक्ष्मी चालीसा हिंदू धर्म में समृद्धि और धन की देवी लक्ष्मी की स्तुति करने वाला एक प्रसिद्ध भजन है. देवी लक्ष्मी को धन, वैभव, सुख, और समृद्धि की देवी माना जाता है, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों द्वारा Laxmi Chalisa पढ़ी जाती है.
यह Laxmi Chalisa में कुल 40 श्लोक होते हैं, जिन्हें भक्तिमय भाव से गाया जाता है. प्रत्येक श्लोक में देवी लक्ष्मी की महिमा, उनके गुण, रूप और आशीर्वाद का वर्णन किया गया है.
Laxmi Chalisa के रचनाकार के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है. इसे विभिन्न संतों और भक्तों द्वारा रचित माना जाता है. हालांकि, Laxmi Chalisa प्राचीन समय से प्रचलित है और इसे अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों, विशेष रूप से दीपावली, धनतेरस और शुक्रवार को पढ़ा जाता है.
यह Laxmi Chalisa देवी लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करती है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों को प्रोत्साहित करती है. लक्ष्मी चालीसा का नियमित पाठ करने से हर व्यक्ति अपने जीवन में लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्त होती है, और उसे समृद्धि, सफलता और सुख की प्राप्ति भी होती है.
ये Laxmi Chalisa का पाठ करने से कोई भी व्यक्ति आर्थिक कठिनाइयों से उबर सकता है और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है. विशेष रूप से Laxmi Chalisa का पाठ शुक्रवार को और दीपावली जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर करना अत्यधिक शुभ माना जाता है. Laxmi Chalisa घर के पूजा स्थल या शांत स्थान पर बैठकर किया जा सकता है.
दीपावली और लक्ष्मी चालीसा:
दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है, जो देवी लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक होता है. इस दिन विशेष रूप से Laxmi Chalisa का पाठ किया जाता है, ताकि घर में लक्ष्मी माता का वास हो और नए साल में आर्थिक स्थिति में सुधार हो.
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विषय | महत्वपूर्ण जानकारी |
नाम | लक्ष्मी चालीसा |
रचना काल | सटीक समय जी जानकारी उपलब्ध नहीं है |
रचयिता | अज्ञात |
भाषा | अवधी और हिंदी का मिश्रण |
मुख्य उद्देश्य | देवी लक्ष्मी की स्तुति और धन, वैभव, समृद्धि की प्राप्ति के लिए. |
लंबाई | लगभग 40 छंद और दोहे |
पढ़ने का शुभ समय | शुक्रवार और लक्ष्मी पूजा के दिन, विशेष रूप से दीपावली पर |
धार्मिक महत्व | इसे पढ़ने से घर में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि होती है |
प्रसिद्धि का क्षेत्र | उत्तर भारत |
Laxmi Chalisa Lyrics
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥१॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥२॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥३॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥४॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥५॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥६॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥७॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥८॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥९॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥१०॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥११॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥१२॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥१३॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥१४॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥१५॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥१६॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥१७॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥१८॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥१९॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
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Laxmi Chalisa PDF
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लक्ष्मी चालीसा के महत्व और लाभ
धन और समृद्धि की प्राप्ति: Laxmi chalisa का नियमित पाठ करने से घर में धन और समृद्धि का वास होता है. Laxmi chalisa विशेष रूप से व्यापारियों और कामकाजी लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है. ऐसा विश्वास है कि देवी लक्ष्मी की पूजा से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है.
पैसो की कठिनाइयों का समाधान: Laxmi chalisa पैसे के संकटों से छुटकारा दिलाने में मदद करती है. विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे लोग इसे अपने घर में नियमित रूप से पढ़ते हैं, ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके और उनकी स्थिति में सुधार हो.
घर में शांति और सुख: Laxmi chalisa का पाठ घर में शांति, सुख, और सौहार्द लाता है. Laxmi chalisa परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और समझ को बढ़ाता है, और घर को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है.
व्यापार धंधे में सफलता: Laxmi chalisa का नियमित पाठ व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है. Laxmi chalisa उनकी व्यापारिक योजनाओं को सफल बनाता है और उनकी कमाई में वृद्धि करता है.
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In Last
Laxmi Chalisa एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है, जो जीवन में धन, सुख, समृद्धि और शांति लाने में सहायक है. नियमित रूप से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से हर तरह की दरिद्रता और आर्थिक तंगी दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
दोस्तों, लक्ष्मी चालीसा पाठ निरंतर करे और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करे. लक्ष्मी चालीसा को अपने दोस्तों और परिवारजनों के साथ जरुर शेयर करे. हमारे साथ जुड़े रहने के लिए आपका शुक्रिया.
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