Shiv Tandav Stotram | शिव तांडव स्तोत्रम् | Shiv Tandav Stotram Lyrics

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Shiv Tandav Stotram: शिव तांडव स्तोत्रम् एक प्राचीन और प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है, जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है.  Shiv Tandav Stotram लंका के राजा रावण ने रचा था, जो भगवान शिव के परम भक्त थे. यह Shiv Tandav Stotram में भगवान शिव के तांडव नृत्य और उनकी दिव्य शक्ति का गहराई से वर्णन किया गया है.

रचयिता और पौराणिक कथा: यह माना जाता है कि जब रावण ने कैलाश पर्वत को अपनी शक्ति से उठाने का प्रयास किया, तब भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर रावण को उसकी जगह पर रोक दिया.  इस घटना से रावण को अपनी भूल का अहसास हुआ, और उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यही Shiv Tandav Stotram रचना की.

Shiv Tandav Stotram कुल 15 श्लोकों में विभाजित है. प्रत्येक श्लोक भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनकी शक्ति, और उनके तांडव नृत्य का वर्णन करता है. यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्त की अटूट भक्ति प्रकट करता है और उनकी कृपा पाने का मार्ग है.

इस Shiv Tandav Stotram नियमित पाठ घर और मन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है. Shiv Tandav Stotram प्रातःकाल या रात्रि में शुद्ध मन और शरीर से पढ़ना चाहिए.

Shiv Tandav Stotram केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि शिवभक्ति की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति है. रावण द्वारा रचित यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विनम्रता और श्रद्धा कितनी महत्वपूर्ण हैं.

दोस्तों, Shiv Tandav Stotram निरंतर पाठ करे और प्रभु शिव की कृपा प्राप्त करे. आपके सुझाव, प्रश्न और सलाह हमें Contact Us पर जरुर लिख भेजे. शिव तांडव स्तोत्रम् अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरुर शेयर करे. हमारे साथ जुड़े रहे. हर हर महादेव!

विषय महत्वपूर्ण जानकारी
स्तोत्र का नामशिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram)
रचयितारावण, लंका के राजा और भगवान शिव के परम भक्त.
भाषासंस्कृत
कविता का प्रकारस्तुति
मुख्य उद्देश्यभगवान शिव की महिमा और तांडव नृत्य का वर्णन
पंक्तियों की संख्याकुल 15 श्लोक
कब और कैसे पढ़ें?प्रातःकाल या रात्रि में.

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Shiv Tandav Stotram Lyrics

Shiv Tandav Stotram Lyrics

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेडवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

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Shiv Tandav Stotram PDF

Shiv Tandav Stotram PDF

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शिव तांडव स्तोत्रम् के लाभ

  • आध्यात्मिक शांति और शुद्धि: Shiv Tandav Stotram नियमित पाठ मन को शांति प्रदान करता है और आत्मा को शुद्ध करता है. यह व्यक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर ऊंचाई पर ले जाता है.

  • शिव कृपा प्राप्ति: भगवान शिव की महिमा का गुणगान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

  • नकारात्मक ऊर्जा का नाश: शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ करने से घर और वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है.

  • ऊर्जा और सकारात्मकता: Shiv Tandav Stotram मानसिक और शारीरिक थकावट को दूर करता है.

  • आत्मविश्वास में वृद्धि: शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्त के भीतर आत्मविश्वास और साहस का संचार होता है.

  • मन की एकाग्रता: शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. यह व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है.

  • कष्टों का निवारण: शिव तांडव स्तोत्रम्  के पाठ से जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं.

  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: शिव तांडव स्तोत्रम् का प्रभाव गहरे सांस लेने और ध्यान की तरह होता है, जो मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है.

  • भय और असुरक्षा से मुक्ति: Shiv Tandav Stotram पाठ डर और असुरक्षा की भावना को दूर करता है और साहस का भाव उत्पन्न करता है.

  • मोक्ष का मार्ग: शिव तांडव स्तोत्रम् भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग पर ले जाता है.

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In Last

शिव तांडव स्तोत्रम् भगवान शिव की महिमा और उनके तांडव नृत्य का अनुपम वर्णन है. इसका नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आध्यात्मिक प्रगति और सकारात्मक ऊर्जा लाता है.

यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि भगवान शिव की कृपा पाने के लिए भक्ति, श्रद्धा और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण हैं. चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, भगवान शिव का स्मरण व्यक्ति को शक्ति और समाधान प्रदान करता है.

शिव तांडव स्तोत्रम् पाठक को अपने अहंकार को त्यागकर भगवान शिव की शरण में आने का मार्ग दिखाता है, जिससे जीवन में शांति और मोक्ष का अनुभव होता है.

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