Shani Chalisa | Shani Chalisa Lyrics | शनि चालीसा

Share Now!

Shani Chalisa: शनि चालीसा भगवान शनि देव की महिमा का वर्णन करता है. इसमें 40 चौपाइयों और दोहों के माध्यम से शनि देव के स्वरूप, शक्ति, और उनके भक्तों पर कृपा का उल्लेख किया गया है.

यह Shani Chalisa पाठ भक्तों को शनि देव की कृपा पाने, उनकी नाराजगी से बचने और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करता है. Shani Chalisa के लेखक के बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. यह पाठ पारंपरिक भक्ति साहित्य का हिस्सा माना जाता है.

शनि देव न्याय के देवता हैं. वे व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं. Shani Chalisa का पाठ व्यक्ति को अपने कर्म सुधारने और शनि देव की कृपा पाने की प्रेरणा देता है.

Shani Chalisa का पाठ विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी माना जाता है, जिनकी कुंडली में शनि की स्थिति कमजोर या अशुभ है. यदि Shani Chalisa श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ा जाए, तो शनि देव अपने भक्तों पर अवश्य कृपा करते हैं और उनके जीवन को सुखद बनाते हैं.

शनिवार को Shani Chalisa पढ़ना अत्यंत शुभ होता है. इसे सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के बाद पढ़ा जा सकता है. साथ ही विशेष अवसरों पर जैसे शनि अमावस्या और शनि जयंती पर भी Shani Chalisa का पठान करने से शनि देव की कृपा बरसती है.

उम्मीद है Shani Chalisa के पठान से शनि देव आपको हर कष्ट, दुःख से मुक्त करेंगे और आप को सुख शांति प्रदान करेंगे. Shani Chalisa अपने दोस्तों और परिवारजनों के साथ शेयर करके शनि देव की कृपा पाए.

आपके अमूल्य सुझाव और प्रश्न आप हमें Contact Us पर लिख भेजे. हमारे साथ जुड़े रहे. जय शनि देव!

CategoryDetails
नामशनि चालीसा
समर्पितभगवान शनि देव
भाषाहिंदी
रचना40 चौपाई और अंतिम दोहे के साथ
रचयिताअज्ञात
मुख्य उद्देश्यशनि देव की महिमा का वर्णन और उनकी कृपा प्राप्त करना.
पढ़ने का समयशनिवार को या शनि अमावस्या के दिन.

Shani Chalisa Lyrics

Shani Chalisa Lyrics

|| दोहा ||

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

|| चौपाई ||

जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥1॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥2॥

परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥3॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥4॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥5॥

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥6॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥7॥

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥8॥

पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥9॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥10॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥11॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥12॥

रावण की गति-मति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥13॥

दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥14॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥15॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवायो तोरी ॥16॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥17॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥18॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥19॥

तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥20॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥21॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥22॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥23॥

कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥24॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥25॥

शेष देव-लखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥26॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥27॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥28॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥29॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥30॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥31॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥32॥

तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥33॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥34॥

समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥35॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥36॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥37॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥38॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥39॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥40॥

|| दोहा ||

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥

श्री शनि चालीसा सम्पूर्ण

Shani Chalisa PDF

Shani Chalisa PDF

दोस्तों, हमने आपके लिए ख़ास Shani Chalisa PDF तैयार की है. ताकि आप अपने मोबाइल में इसे डाउनलोड करके रख सके और समय आने पर इसका पथ योग्य तरीके से कर सके. 

शनि चालीसा का महत्व

शनि दोष का निवारण: कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति (साढ़े साती, ढैया, या शनि महादशा) के प्रभाव को कम करने में यह अत्यधिक प्रभावी है.

धार्मिक महत्व: Shani Chalisa का पाठ भगवान शनि की महिमा और उनके न्यायप्रिय स्वभाव का वर्णन करता है.

कर्म सुधार: शनि देव व्यक्ति के कर्मों का फल देते हैं.  Shani Chalisa का पाठ करने से व्यक्ति के अशुभ कर्मों का प्रभाव कम हो सकता है.

भय का नाश: Shani Chalisa का पाठ शनि ग्रह से जुड़े डर और भ्रम को दूर करता है.

कष्टों का निवारण: जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ, जैसे आर्थिक संकट, स्वास्थ्य समस्याएँ, और मानसिक तनाव, Shani Chalisa के पाठ से कम होते हैं.

Shani Dev Chalisa​

Shani Dev Chalisa​

Shani Chalisa के पठन से भगवान शनि की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है. साथ ही Shani Chalisa पाठ करने से बाधाएँ, शत्रु, और बुरी नजर का प्रभाव समाप्त हो जाता है.

शनि देव को प्रसन्न करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. Shani Chalisa का पाठ मन को शांति और सकारात्मकता प्रदान करता है. शनि देव व्यक्ति के जीवन में न्याय और संतुलन बनाए रखते हैं.

In Last

इस Shani Chalisa का पाठ श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

जो भी भक्त Shani Chalisa का नित्य पाठ करते हैं, वे भगवान शनि देव की कृपा से जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर एक सफल और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

Shani Chalisa का पाठ जरुर करे. इसे अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरुर शेयर करे ताकि वे भी शनि देव की कृपा प्राप्त कर सके. हमारे साथ जुड़े रहने के लिए आपका शुक्रिया.

Leave a Comment